गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है।
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Govardhan |
यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं।
गोवर्धन की परिक्रमा
सदियों से यहाँ दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं। यह 7 कोस की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्योर, राधाकुंड, कुसम सरोवर , राधाकुंड, पूंछरी का लौटा, दानघाटी आदि हैं।
जहाँ से परिक्रमा शुरु होती है वहां पर एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसे दानघाटी मंदिर कहते है।
श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए तो आते ही हैं,लेकिन बड़ी सांख्य में लोग यहां परिक्रमा भी लगाते हैं।
कुछ लोग पैदल परिक्रमा लगाते हैं कुछ दण्डौती परिक्रमा लगाते हैं। गर्मियों में ज्यादातर लोग रात को परिक्रमा करते हैं। सर्दियों में दिन में रोजाना बहुत बड़ी संख्या में लोग परिक्रमा करते हैं।
दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।
इसकेअलावा जब लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है तो दूध की धार से 21 किमी की परिक्रमा लगाते हैं।
दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।
इसकेअलावा जब लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है तो दूध की धार से 21 किमी की परिक्रमा लगाते हैं।
गोवर्धन
मथुरा से 21 किमी की दूरी पर गोवर्धन है। यंहा पर २१ किलोमीटर की परिक्रमा लगाई जाती है। इस परिक्रमा में दो क्षेत्र पड़ते हैं एक गोवर्धन पर्वत और दूसरा राधा कुंड।
राधाकुण्ड से तीन मील दूर गोवर्द्धन पर्वत है। पहले यह गिरिराज पर्वत 7 कोस (21 कि·मी) में फैले हुए थे, पर अब आप धरती में समा गए हैं।
राधा कुंड परिक्रमा में कुसुम सवोवर है, जो बहुत सुंदर बना हुआ है।
गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्द्धन ग्राम बसा है। मानसीगंगा पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा आषाढ़ी पूर्णिमा तथा कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है।
राधा कुंड की परिक्रमा मानसी गंगा पड़ती है, जिसे भगवान् ने उत्पन्न किया था। यंहा पर दीवाली के दिन दीप मालिका होती है। जो देखने में बहुत ही अच्छी लगते है। इसमें बहुत बड़ी मात्रा में घी दूध चढ़ाया जाता है।
मथुरा से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्द्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान दानघाटी क्षेत्र कहलाता है। यहाँ भगवान् दान लिया करते थे। यहाँ दानरायजी का मंदिर है।
मुड़िया पूर्णिमा मेला
यह मेला गोवर्धन में लगता है और उस समय लाख नहीं करोड़ों लोग गोवर्धन की परिक्रमा लगाते हैं। इस मेले में गोवर्धन में मिनी कुम्भ की झलक दिखाई देती है।
उस समय पर प्रदेश सरकार सुरक्षा एवं सफल परिक्रमा आयोजन के लिये भरसक प्रयास करती है। क्योंकि लाखों की संख्या में श्रद्धालु गोवर्धन में पहुँच जाते हैं।
कैसे पहुँचें
मथुरा से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी परगोवर्धन पर्वत एवं तहसील है। हर समय मथुरा से जीप/बस/टेक्सी उपलब्ध रहते हैं।
गोवर्धन में कहाँ ठहरें
गोवर्धन एवं जतीपुरा में कई धर्मशालाएं एवं होटल हैं। जहाँ रुकने एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था हो जाती है। यद्यपि भक्तों का यहाँ हमेशा ही आना जाना लगा रहता है परंतु पूर्णिमा के आस पास यह संख्या काफी बढ़ जाती है।
आस पास अन्य स्थल
नंदगाँव, बरसाना
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