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लाल पीली नीली हरी मिठाई न खाएं
लाल, पीली, नीली, हरी मिठाइयां बाजार में आपको मिलती हैं। आजकल लोग रंगीन मिठाइयों को खरीद भी खूब रहे हैं। क्या यह उस मिठाई का प्राकृतिक रंग है, निश्चित ही इसका उत्तर नहीं है।
जब मिठाई बनती है तो उसका अपना प्राकृतिक रंग होता है। तो उस प्राकृतिक रंग वाली मिठाई को खाने में क्या परेशानी है। खानी तो मिठाई है फिर लोग लाल पीली नीली हरी मिठाई क्यों खरीदते हैं क्यों खाते हैं।
यह बात आप निश्चित ही मानिए के जब हम प्राकृतिक मिठाई में रंग मिलाते हैं तो वह कहीं ना कहीं मनुष्य के शरीर को नुकसान ही पहुंचाते हैं। फिर लाल पीली नीली हरी मिठाई खाने का क्या औचित्य है।
क्यों हम अपने शरीर में जहर घोल रहे हैं। लाल पीली नीली हरी मिठाई देखने में हो सकता है अच्छी लगे लेकिन ये उसका प्राकृतिक रंग तो नहीं है तो फिर क्यों उसे खाया जाए।
ऐसा भी नहीं है कि मिठाई को रंगीन करने से उसके स्वाद बढ़ जाता हो। जो लाल पीली नीली हरी मिठाई हम खाते हैं तो मिठाई में मिले रंग हमारे शरीर के अंदर ही तो प्रवेश कर जाते हैं क्या वह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
हम जाने-अनजाने ऐसीअनेक गलतियां करते रहते हैं जिनके परिणाम अनेक बीमारियों के रूप में हमारे सामने आते हैं। क्या लाल पीली नीली हरे रंग से मिठाई का स्वाद बढ़ जाता है, यदि नहीं तो फिर क्यों खाते हैं।
यमुना में प्रदूषण
लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के बीच यमुना में दिखे जहरीले झाग देखने को मिल रहे है.
झाग का वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किया जा रहा है. डिटर्जेंट को इस प्रदूषण के बड़े कारणों में से एक माना जा रहा है.
देश में ज्यादातर डिटर्जेंटों के पास आईएसओ (अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन) का प्रमाणपत्र नहीं है जिसने इस रासायनिक पदार्थ फॉस्फेट की मात्रा तय कर रखी है। जहरीले झाग बनने के पीछे प्राथमिक कारण रंग उद्योग, धोबी घाट और परिवारों में उपयोग में लाए जाने वाले डिटर्जेंट की वजह से अपशिष्ट जल में उच्च फॉस्फेट की मात्रा है।
'परिवारों एवं रंग उद्योग में बड़ी संख्या में बिना ब्रांड के डिटर्जेंटों का उपयोग किया जाता है. उच्च फॉस्फेट मात्रा वाला अपशिष्ट जल अशोधित नालों के जरिए नदी में पहुंचता है। जब नदी सामान्य ढंग से बह रही होती है तब ये डिटर्जेंट और अन्य आर्गेनिक पदार्थ नदी तल पर जमा हो जाते हैं. जब अधिक पानी छोड़ा जाता है तो ओखला बैराज पर पहुंचकर वह ऊंचाई से गिरता है और फलस्वरूप मथने से झाग बनता है.'
इस समस्या का हल यह है कि सीवर नेटवर्क से जुड़ा हो तथा अपशिष्ट जल का शोधन हो. तो ऐसी समस्या बिल्कुल नहीं आएगी. अपशिष्ट शोधन संयंत्रों की क्षमता का पूरा दोहन नहीं किया जाता है और मानकों को पूरा नहीं किया जाता है. यही कारण है कि ऐसी समस्या सामने आती है।
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